मन शांत क्यों नहीं रहता है इसका उत्तर बेहद ही सरल है लेकिन हर किसी को पता नहीं होता है और हर व्यक्ति मन से परेशान होता है चलिए आज हम आपको बताते हैं कि मन क्यों हमेशा अशांत रहता है और क्यों मन भटकता रहता है और व्यक्ति को शांति क्यों नहीं देता है।


मन शांत क्यों नहीं रहता है कारण 


व्यक्ति का शरीर पंच कर्म इंद्रियों ,जैसे पूरा शरीर त्वचा, आंख कान, नाक, जीभ, इन सब से मिलकर हमारा शरीर बनता है और इन सब का विषय भोजन यह पूरा संसार है जैसे त्वचा का भोजन विषय, सेक्स संभोग है और नाक का सुकन्ध है और जीव का भोजन स्वादिष्ट भोजन खाना उसमे स्वाद लेना और कान का विषय भोजन अच्छे-अच्छे गाने सुनना अच्छे वाली सुनना यह सब इन पांचो इंद्रियों का विषय है


और इन्हीं विषयों की ओर व्यक्ति का मन जीवात्मा को उन्हीं की ओर भटकाए रहता है जैसे नाच गाना, देखना, फिल्म ,पिक्चर देखना अच्छे-अच्छे भोजन करने की चाहत इच्छाएं ,स्त्री संभोग अच्छी-अच्छी अप्सराओं के संग संभोग करना ,
 यह भोग जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति का मन विषय की और ले जाता है जिसके कारण मन हमेशा अशांत रहता है इसका यही प्रमुख कारण है इसका हम प्रमाण गीता उपनिषदों के अनुसार देख सकते हैं।


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एक व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य होता है अच्छे-अच्छे मकान महल बनाना उसमें रहना मान सम्मान प्रतिष्ठा स्थापित करना अच्छे-अच्छे स्वादिष्ट भोजन पाना लोगों द्वारा सम्मान पाना लोग आपकी प्रशंसा करना हर जगह घूमना फिरना वस्तुएं देखना स्त्री के संग संभोग करना रोज नई-नई स्त्री के संग संभोग करना यही पूरे संसार का काम है यही इच्छाएं कामनाएं मन लेकर पूरा संसार जीता है और इसी के कारण व्यक्ति का मन हमेशा अशांत रहता है


क्योंकि शरीर का यह जितने बताए गए हैं यह सब भोग भोजन शरीर का होता है शरीर को यही सब चाहिए और इसी की ओर मन शरीर को लेकर जाता है और आप भी उसके साथ आप भी चले जाते हैं और अंत में जाकर आपको अशांति ही मिलती है क्योंकि आत्मा का वहां पर सुख शांति नहीं है इच्छाएं कभी पूरी नहीं होती है एक इच्छा खत्म होते ही दूसरी इच्छा आ जाती है इसी कारण मन कभी भी शांति को नहीं पाता है। प्रमाण के साथ।। 


 

1. श्रीमद्भगवद गीता – अध्याय 6, श्लोक 34-35:

"चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद् दृढम्।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्॥"


"हे कृष्ण! मन अत्यंत चंचल, बलवान और हठी है; उसे वश में करना वायु को रोकने जैसा कठिन है।"

उत्तर में श्रीकृष्ण कहते हैं:

"असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥" (6.35)

👉 यानी मन की अशांति का कारण है — इन्द्रियों की भटकाव, इच्छाओं की अधिकता, जब तक व्यक्ति इंद्रियो के विषय से खुद को मुक्त नहीं कर लेता तब तक व्यक्ति कभी शांति नहीं पा सकता है ।




2. पुराणों में मन की अशांति का कारण


स्कन्द पुराण, पद्म पुराण और शिव पुराण में बताया गया है कि जब मन विषयों (भौतिक वस्तुओं) में फँस जाता है, तो वह अशांत हो जाता है।

स्कन्द पुराण में कहा गया है:

"विषयासक्ति जनिता, मनसो दुःखकारिका।
वैराग्येन तु सा नश्येन्निश्चलत्वं लभेच्च मनः॥"

📌 "विषयों (संसारिक वस्तुओं) में आसक्ति ही मन की पीड़ा और अशांति का कारण है। जब वैराग्य आता है, तब मन स्थिर होता है।"